कालवाड़ तहसील में खसरा नं. 909 गैर मुमकिन शमशान भूमि पर 20 दुकानें बनवाकर अतिक्रमण करने का मामला, अब न्यायालय ने दिए भूमि सीमांकन और अतिक्रमण हटाने के आदेश
कालवाड़ तहसीलदार ने कलेक्टर को भी दाखिल कर दी थी फर्जी रिपोर्ट, पूरे मामले में बड़ी मिलीभगत की आंशका, जनहित याचिका पर हाईकोर्ट के निर्णय के बाद होंगे कई खुलासे
जयपुर। कालवाड़ तहसील में खसरा नं. 909 गैर मुमकिन शमशान भूमि जयपुर विकास प्राधिकरण के नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है। लेकिन, इस भूमि पर मिलीभगत से अवैध अतिक्रमण कर 20 दुकानों का निर्माण कार्य करवाया जा रहा था। इस मामले में कालवाड़ तहसीलदार की अकर्मण्यता और मिलीभगत से अतिक्रमण करवाए जाने की शिकायत पर अब हाईकोर्ट ने जमकर फटकार लगाई है। जानकारी के अनुसार जगदीश प्रसाद यादव की जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया है कि कालवाड़ तहसीलदार को शिकायत की जांच करनी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो शिकायत की पुष्टि के लिए भूमि का सीमांकन करने के बाद मौके का निरीक्षण करना चाहिए। साथ ही यदि श्मशान भूमि के किसी हिस्से पर अतिक्रमण किया गया है, तो अतिक्रमण हटाने के लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार याचिकाकर्ता को 30 दिनों की अवधि के भीतर तहसीलदार कालवाड़ को आवेदन प्रस्तुत करेगा। जिसके बाद तहसीलदार को 3 महीने में जांच पाूरी करनी ही होगी। यह आदेश चीफ जस्टिस मनिन्द्र मोहन श्रीवास्तव एवं जस्टिस भुवन गोयल की बेंच द्वारा जारी किए गए है। पूरे प्रकरण के अनुसार ग्राम पंचायत कालवाड़ तहसील कालवाड़, पंस झोटवाड़ा स्थित खसरा नं. 909 गैर मुमकिन शमशान भूमि जयपुर विकास प्राधिकरण के नाम राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज है। लेकिन, मिलीभगत से इस भूमि पर अवैध अतिक्रमण कर 20 दुकानों का निर्माण कार्य मौके पर किया जा रहा था। इसकी कई बार शिकायत की गई लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं गई जिसके बाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी।
कालवाड़ तहसीलदार ने जिला कलेक्टर को भी भेज दी थी फर्जी रिपोर्ट
जानकारी के अनुसार श्मशन भूमि पर बतिक्रमण की शिकायत जिला कलेक्टर सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों को भी की गई थी। जिला कलेक्टर द्वारा इस शिकायत पर जांच रिपोर्ट भी मांगी गई थी लेकिन कालवाड़ तहसीलदार ने इसकी भी फर्जी रिपोर्ट भेज दी जिससे कि कार्रवाई नहीं हो सकी। ऐसे में पूरे प्रकरण में कालवाड़ तहसीलदार और कई स्थानीय संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत सामने आ रही है। गौरतलब है कि पंचायतों के द्वारा पट्टे आबादी भूमि में दिये जाते है न कि शमशान भूमि या अन्य किस्म की भूमियों में। लेकिन, यहां बकायदा श्मशान भूमि पर अतिक्रमण कर दुकानों का निर्माण करवाया जा रहा था।